जश्न-उमंग का देखो मंच आज फिर सजा है
सोचते थे बस कुछ पल पहले की जीना भी एक सज़ा है
मेरे अपने ही थे जो ये कहते थे, तेरे वजूद का
अपना ही इक मज़ा है
तो क्या हुआ की तू इस बार खुश ना हुआ
वो तो एक शाम थी बस एक महफ़िल थी,
जश्न तो फिर भी अभी बचा है
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