उन तनहाइयों की दीवारों के बीचों बीच से मैं गुजरा था
सवेरे की तलाश में मैं यहाँ वहां भटका था
दूर एक आवाज़ सुनाई दिया करती थी
हौंसला ना हार मेरे दोस्त वोह कहा करती थी
सुन कर भी अनसुना मैं उसको करता था
आज जब बैठा हूँ, बीते समय को सोचता हूँ
वो दो चार दिन और जी लेता वो भी अच्छा था
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